बोलो टूटे हुए पंखों से कोई कैसे उड़े
पिंजरे में बंद चिड़िया जैसे मन तडपे
कोशिश तो हमने की थी बार बार
लेकिन डूब गए नाव नदी के इस पार||
उम्मीद पे दुनिया कायम हैं, लेकिन
उम्मीद करना भी हुयी हैं नामुमकिन
ज़िन्ग्दंगी जैसे डूब गयी हो बीच समुन्दर
बचाने आया नहीं कोई भी अब इस बवंडर||
हजारों ख्वाब थे रोशन इन आंखों में
न जाने किसने बुझादिये सारे दिए एक पल में
अब तो चारों और झाए अन्धेरा ही अन्धेरा
न जाने कब टूटेंगे सासों की यह सिकुटती डेरा...
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