Friday, April 25, 2014

उम्मीद ???

बोलो टूटे हुए पंखों से कोई कैसे उड़े

पिंजरे में बंद चिड़िया जैसे मन तडपे

कोशिश तो हमने की थी बार बार

लेकिन डूब गए नाव नदी के इस पार||

उम्मीद पे दुनिया कायम हैं, लेकिन

उम्मीद करना भी हुयी हैं नामुमकिन

ज़िन्ग्दंगी जैसे डूब गयी हो बीच समुन्दर

बचाने आया नहीं कोई भी अब इस बवंडर||

हजारों ख्वाब थे रोशन इन आंखों में

न जाने किसने बुझादिये सारे दिए एक पल में

अब तो चारों और झाए अन्धेरा ही अन्धेरा

न जाने कब टूटेंगे सासों की यह सिकुटती डेरा...

picture courtesy: google images 

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