मौत के काली अंधी हाथों ने जब
चुरालिया मेरे जीवन का सपना
बेबस लाचार तनहा खड़ी थी मैं
ज़िन्दगी की चौराहों पर ||
एक पल में जैसे मैंने सब
हैं खो दिए; जीवन के रंगीन
सपने हो गए बेरंग; जीने की
आस ही दिल से छूट सी गयी...
भटकती रही मैं मन की
गलियों में, ढूँढ़ते रहे जवाब,
हज़ारों सवाल थे जगे हुए -
मेरे ही साथ ऐसे क्यों हुए ???
बेसहारा, बेबस घूम रही थी मैं,
जब अचानक दिखी एक तिनका
रौशनी की; उसके सहारे चली मैं;
और मिल गयी उजाले की सौबत...
देखा तो दिल के अन्दर ही से
मेरे, निकल रहे थे वे किरणों की
तरंग; जैसे मुझ से वह कह रही हैं -
आगे बढ़ना हैं तुम्हे जीवन की ओर!
7 comments:
You write so well in Hindi as well. I am truly inspired by your work Nisha.
Hope I can pen something as lovely as this...
Thank you Saru! I am very happy to know your opinion. Since Hindi is not my mother tongue, when appreciation comes for a piece written in Hindi, I am doubly thrilled!!!
Thanks a lot!
Dear Nisha,
I'm honored to nominate your name for a blooger award.
Please visit my blog for details.
Af'ly
..LeoPaw
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Af'ly
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Its been some years that I spent time to read Hindi.. and I loved it.
Durlov
http://murphotography.blogspot.com
Thank you Leo. Shall surely do that.
Thank you Durlov Baruah! Glad you liked it..
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