आसमान के गोदी में खिले हैं
हज़ारों तारें
सूनी सी राहों पे बिखर रहे हैं
झलक चाँदिनी की;
रजनी गंधा भी खिले हैं
रात की आँचल में...
मैं बैठी हूँ अम्बर को निहारे,
दूर बसे तारे,
जब मुझे देख के हँसने लगी
तो मैं भी-
एक पल के लिए अपने ग़मों
को भूल गयी...
खुशियों के सौगात ले आई
यह तारे
अचानक खिल उठी मन की
गलियाँ सारी
तारों के तरह चमकने लगी
दिल में ख़ुशी
एक नए दिन की इंतज़ार हैं
अब मुझे;
ज़िन्दगी के राहों पर ख़ुशी
से मैं चलूं
नयी राह नयी दिशा; सब कुछ
नया ही लगे..
2 comments:
Bahut Sundar...Loved it...:)
Thank you Saru!
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