Saturday, December 24, 2011

इंतज़ार

आसमान के गोदी में खिले हैं
हज़ारों तारें
सूनी सी राहों पे बिखर रहे हैं
झलक चाँदिनी की;
रजनी गंधा भी खिले हैं
रात की आँचल में...

मैं बैठी हूँ अम्बर को निहारे,
दूर बसे तारे,
जब मुझे देख के हँसने लगी 
तो मैं भी-
एक पल के लिए अपने ग़मों
को भूल गयी...

खुशियों के सौगात ले आई
यह तारे
अचानक खिल उठी मन की
गलियाँ सारी
तारों के तरह चमकने लगी
दिल में ख़ुशी

एक नए दिन की इंतज़ार हैं 
अब मुझे;
ज़िन्दगी के राहों पर ख़ुशी
से मैं चलूं 
नयी राह नयी दिशा; सब कुछ
नया ही लगे..
 

2 comments:

Saru Singhal said...

Bahut Sundar...Loved it...:)

Nisha said...

Thank you Saru!

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