ज़िन्दगी के हमने देखे हैं रंग अनेक
कुछ मीठी कुछ खट्टी, तो कुछ हैं भयानक!
कभी हम हँसे तो कभी हम रोये,
कभी हम डरे तो फिर कभी हम संभले;
कभी छाव में चले, तो कभी चले कड़ी धुप में;
कभी हम चल भी न पाए ज़िन्दगी के राहों में!
यह ज़िन्दगी के हमने देखे हैं रंग हज़ार
यहाँ कभी प्यार तो कभी तकरार!
ज़िन्दगी के हैं अनेक वर्ण - चित्र-विचित्र
यही तो देती हैं हमें जिंदा रहने के औज़ार;
कल मैं रहूँ न रहूँ, मुझे गिला शिकवा नहीं,
किसी भी दिन मेरी ज़िन्दगी बेरंग कटी नहीं !!!
3 comments:
ज़िंदगी है ही रंग-बिरंगी । सुंदर रचना ।
Rajneeshji,
Thank you for the comment!
धन्यवाद जोमोन! रंग बिरंगी दास्तानों के बिना ज़िन्दगी कितनी सूनी हैं...
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