काली रात के आँचल में
तन्हाई के चादर ओढ़ के
तुम्हारे यादों मेंबेकरार-
लम्हों को हम गुज़ारा करते हैं |
कही दूर से गूँज रही हैं किसी
बुल बुल के एकाकी नगमे;
पीपल के डालों पर से कई
जुगनुओं ने आँख मिचोली खेली...
अम्बर के आँगन में खिलते
तारों को गिनगिन करके
बहारों में लहराते हवाओं के
खुशुबुओं को महसूस करके,
काली अँधेरी यह रात भी
ऐसे ही हम गुजारेंगे;
दिल में बस यही आस लगी
कि - तुम कब आओगे??
तन्हाई के चादर ओढ़ के
तुम्हारे यादों मेंबेकरार-
लम्हों को हम गुज़ारा करते हैं |
कही दूर से गूँज रही हैं किसी
बुल बुल के एकाकी नगमे;
पीपल के डालों पर से कई
जुगनुओं ने आँख मिचोली खेली...
अम्बर के आँगन में खिलते
तारों को गिनगिन करके
बहारों में लहराते हवाओं के
खुशुबुओं को महसूस करके,
काली अँधेरी यह रात भी
ऐसे ही हम गुजारेंगे;
दिल में बस यही आस लगी
कि - तुम कब आओगे??
6 comments:
काली अँधेरी यह रात भी
ऐसे ही हम गुजारेंगे;
दिल में बस यही आस लगी
कि - तुम कब आओगे??
आपके ब्लॉग पर पहली दफा आया हूँ.
आपकी प्रोफाइल में आपके बारे में पढकर व
आपकी भावपूर्ण अनुपम प्रस्तुति पढकर बहुत प्रसन्नता मिली.
आपका फालोअर बन गया हूँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका हार्दिक स्वागत है.
राकेशजी,
धन्यवाद! हमारे ब्लॉग में आपका स्वागत!!! आप ने अपने कीमती समय से हमारेलिये वक़्त निकाला, और अपने टिपण्णी दी, इसके लिए हम आभारी हैं|
शुभकामनाएँ!!!
बेहतरीन प्रस्तुति। शानदार अभिव्यक्ति,
हिन्दी व अंग्रेजी दोनों में लिखते रहो। हम पढते रहेंगे।
संदीपजी,
टिपण्णी के लिए अनेक धन्यवाद| इस से हमे और भी लिखने की प्रेरणा मिलती हैं!
हो भयंकरम तन्ने | ओरु वारी वायिक्कान ओरु मिनिट एदुत्तु |
कठोरम कठोरम |
नमिच्चु |
अनोंय्मोउस,
वलरे नंदी! आद्यामायान मलयालम हिन्दियिल वायिचत|
कल्क्की टो|
पैर परयान यन्ता ओरु मडी?
एन्तायालुम इत्र कश्त्ताप्पेट्टू वायिचतिनुम, अभिप्रायं परन्जतिनुम नन्दियुंड!!!
Post a Comment