जाने कहाँ गए वो दिन
बचपन के न्यारे,
निडर होके जब हम चले थे
हर राह पर;
कितने रंगीन थे वो दिन -
बचपन के हमारे
जब मन में थे मेरे, केवल
खुशियों के लहर!
बागों में नाचती तितलियों
के पीछे भागना,
छम छम कर बरसते
बारिश में भीगना;
बेफिक्र सोना
फूलों और कलियों से दिन-
रात बाते छेड़ना;
तालाब के ठन्डे पानी में
गोते लगाना,
हरियाली खेतों में लहराते
पवन को छूना;
सुबहों में ओस की बूंदों के
मिठास चखना,
रातों को छत पर लेट आकाश
के तारे गिनना;
न जाने कहाँ गुम होगए
वो बहारें बेमिसाल
जाने कहाँ खो दिए मेने
बचपन के वो दिन सुनहरे!!!
6 comments:
good joob dude
Thank you, unknown friend!!!
♥
आदरणीया nishdil जी
सस्नेहाभिवादन !
मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई …सुदूर दक्षिण केरल में आपको हिंदी भाषा में काव्य सृजन करते हुए देख कर …
न जाने कहां गुम हो गए
वो बहारें बेमिसाल
जाने कहां खो दिए मैंने
बचपन के वो दिन सुनहरे!!!
बचपन की यादों के सहारे हम सब जीवन भर अपने आपको बहलाते रहते हैं … मन को छूने वाले भाव हैं आपकी कविता में … बधाई और शुभकामनाएं !
आपकी चित्रकारी ने भी प्रभावित किया … आभार !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Thank you Rajendraji! you kind words are really appreciated!
आप पहले दक्षिण भारतीय व्यक्ति मुझे मिले हो जिन्हें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी से इतना लगाव है और उम्मीद है आप जैसे लाखों होंगे |आपकी चित्रकला सुन्दर है |आपका प्रोफाइल पढ़कर मैं बहोत प्रभावित हुआ हूँ |
आपकी कविता ने मेरे दिल को छू लिया और मेरे बचपन की याद दिला दी |बहोत-बहोत बधाइयाँ |
Thank You Srikantji for your comments!
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